ऊँचे-नीचे रास्ते और मंजिल तेरी दूर...
फि ल्म खुद्दार 1982 में प्रदर्शित जिसमें संजीव कुमार अपने भाईयों अमिताभ बच्चन व विनोद मेहरा के साथ इस गीत को साईकिल पर गाते हुए चलते हैं, जिसे स्वर दिया है पाश्र्व गायक किशोर कुमार ने और संगीतबद्ध किया है राजेश रोशन ने। गीत के बोल मजरूह सुल्तान पुरी ने लिखे हैं और उतनी ही खुबसूरती से इसे संजीव कुमार ने निभाया है। फिल्म की कहानी परिवार के इर्द-गीर्द घूमती है, जिसमें संजीव कुमार और दो छोटे भाईयों के जीवन की कहानी का रूपांतर किया है, हमारे जीवन में थी इस प्रकार के उतार-चढ़ाव आते हैं लेकिन हमें घबराना नहीं चाहिए और राह में रूकना नहीं चाहिए, क्योंकि हमारी मंजिल की राह इतनी आसान नहीं है। उस राह में ऊँचे-नीचे रास्ते हैं जो हमें रूकने को मजबूर करते हैं, लेकिन असल में राही वही है जो निरंतर मंजिल की तरफ बढ़ते ही चला जाता है। हम जिस राह पर चलते हैं जो हमारे लिए होती तो अजनबी डगर है, क्योंकि हमें ये पता होता है कि हमारी मंजिल का रास्ता यही है, लेकिन उस रास्ते के ऊँचे-नीचे का हमें ज्ञान नहीं होता है कि वह रास्ता कैसा होगा फिर भी हम बिना रूके उस रास्ते पर चलने को तत्पर रहते हैं। हमें उस रास्ते पर देखकर और संभलकर चलना पड़ेगा, क्योंकि कई जगहों पर हमें राह मेंं रोकने वाले मिलेंगे। हमें भटकाएंगे, हमारा ध्यान कहीं और ले जाएंगे और यदि हम उनकी बातों में आकर रूक गए या हमने अपना रास्ता बदल लिया तो हम जीवन की सबसे बड़ी भूल यहीं पर करेंगे। इसलिए दोस्तों आगे देखे और बढ़ते चलो अपनी मंजिल पर ऊँचे-नीचे रास्ते रूपी लोगों से बचकर निकल जाओ। राह में रूकों नहीं, थको नहीं, किसी के बहकावे में मत आओ। अपनी निष्ठा, समर्पण भाव से निरंतर आगे बढ़ते रहो। चलते-चलते यदि पैर थक भी जाए तो ऐ मेरे दोस्त दो घड़ी पल दो पल कहीं बैठकर थकान दूर कर और फिर एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ता जा। रास्ते में विलासिता की बहुत सारी चीजें मिलेगी, तू कहीं इनमें भटक मत जाना, क्योंकि ये मंजील तक नहीं पहुँचने के बहाने होंगे जो तुम्हारे ही अपने कुछ लोगों ने तुम्हें रोकने के लिए बिछाए होंगे। हमें उन सभी टेड़े-मेड़े रास्तों को अपने से दूर करना है और मंजिल तक पहुँचने तक थकना नहीं है, कहीं भी रुकोगे नहीं तो मेरे दोस्त मंजिल तक पहुँचने से तुम्हें ये ऊँचे -नीचे रास्ते रोक नहीं सकते।
हमेशा मंजिल तक पहुंचने से पहले हमें मान-सम्मान रूपी रास्ते में छांव मिलेगी। हमें उस छांव में यानि मान-सम्मान में रुकना नहीं है, उस सम्मान से यदि संतुष्ट हो गए तो फिर आपके अन्दर थकान आना शुरू हो जाएगी, इसलिए ऐ राही तुझे रास्ते में प्यार, मान-सम्मान, दु:ख-सुख मिले तो ये सब तू क्षणिक ही समझना और इसमें उलझना मत, क्योंकि यदि यहाँ इनमें उलझ गया तो फिर अपनी मंजिल तक कैसे पहुँचेगा, अक्सर राही इस घाव रूपी बातों में उलझकर अपनी मंजिल तक नहीं पहुँच पाता है और फिर जो उसने लक्ष्य लिया था, जो उसका फोकस था उससे वो दूर हो जाता है, जब वो अपने आपको अपने लक्ष्य से दूर पाता है तो फिर उसे राह में रोकने वाले खुश होते हैं और वो स्वयं दु:खी मन से अपने आपको कोसते हुए नजर आता है कि मैने राह में इन लोगों की बात क्यों सुनी और फिर एक मायूसी हृदय के अंदर घर कर जाती है, जो हमें फिर कभी भी आगे नहीं बढऩे देती है, इसलिए ऐ राही ऊँचे-नीचे रास्तों को मत देख, बस अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए निरंतर आगे ही आगे बढ़ता रहे तो एक दिन तेरी मंजिल तुझसे दूर नहीं होगी।
-दीपक पाठक